भट्टा तो सबका ही बैठने को है

 फिर पांच साल का चक्कर फिर आ गया,  फिर एक बार चुनाव आ गया। वैसे यह चुनाव है तो खास, ज़्यादा नहीं थोड़ा सा तो ख़ास है। मुद्दे वही सदियों पुराने ही है,सड़क, बिजली ,पानी या रोज़गार लेकिन एक दो नए मुद्दे भी है जैसे राष्ट्रवाद,  मानो की हम वापिस अंग्रेज़ो के ज़माने में आज़ादी की ज़ंग लड़ने को फिर से तैयार है। कुछ नहीं बदला इतने सालो में, जैसे की यह देश आज भी वही खड़ा है। सदियों पुराने मुद्दे आज भी अपनी झोली में भरे, बढ़ रहे है भविष्य की तरफ। 

वही जाति धर्म का वोट, और वही बिरादरी की सीट। 21वीं सदी के भारत में यह आज भी आम है, और अगर नेता चुना ही बिरादरी के नाम पर तो काम की अपेक्षा करना तो नाजायज़ ही लगता है।

सभी को लगा तो होगा ही, की चुनाव मुद्दे पर होंगे, लेकिन यह नहीं याद था कि मुद्दे मंगलसूत्र, बुर्का या अपनी भैंस होगी। हम सब को पहले से ही पता था की लोग दुसरो के परिवार को कई बार याद करेंगे ठीक उसी तरह जब हम सड़क पर चलते है तो नेताजी के परिवार को याद करते है, कितनी हिचकी आती होगी उनके परिवार को, आखिर शुभचिन्तक भी तो इतने है।

नेताजी हेलीकॉप्टर से उतरते, पचास गाड़ी के काफ़िले से चलते है और मंच से कहते है की, मैं गरीब हूँ, मुझे वोट दो, अगर ऐसे लोग भी गरीब है तो हम क्या हुए??

सब को मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर याद आने लगते है, मानो ऊपर वाले को भी रिश्वत चढ़ाने लगते है, लेकिन अक्सर व्यस्तताओं में भूल जाते है, की उपरवाले के दर पर पैसे और लालच काम नहीं आते है। जिसने सबको दिया, उसे तू क्या ही देगा।

लोग स्वघोषित ही राष्ट्रवादी, धर्मवादी, क्रांतिकारी और लोकहितवादी बन जाते है और प्रमाण पत्र बांटने लगते है। यह ठेका इन लोगों को  मिला कब ?

और बिडंबना तो तब होती है जब गाँधी को गाली दे कर खुद को भगत सिंह के शिष्य बता कर धर्म के लिए लड़ते है। जिन्होंने खुद न कभी गाँधी को पढ़ा न भगत सिंह को, जिन्हे लगता है यह दोनों बिलकुल ही अलग धुरी है, जैसा की बिलकुल भी नहीं है, लेकिन पढ़ा ही नहीं तो क्या करे ?

और पूंजीवाद के चकाचौंध में ग़ुम बस घूम रहे है एक चोला पहने।

इस दुनिया में आँख से न देख पाने वाले, दिमाग से न देख पाने की मुक़ाबले काफी कम है और उनके जीवन में अन्धकार भी इनके मुक़ाबले कम ही है।

ज़हन से अपाहिज़ लोग कही के नहीं होते, अंग्रेजी में इन्हे ही ज़ोम्बी कहा जाता है।

मैं कौन हूँ यह मुझे पता है, मुझे यह बताने आप वाले कौन, किसने पूछा ? मेरे मुद्दे मैं जानता हूँ, अरे तुम्हें कुछ नहीं पता कह कर मेरे हिस्से का फुटेज खाने वाले तुम कौन ?

भारत अखंड राष्ट्र बन चुका है, बस देहलीज़ पर खड़ा है, अच्छी बात है, लेकिन मेरे मोहल्ले की सड़क और नाली कब बनेगी यह भी बता दो महोदय।

वोट दोगे तो कृपा आएगी, आना तो बहुत कुछ भी था मगर खैर छोडो।

देश में कौन किसके जैसा दिखता है, इससे क्या फर्क पड़ता है, भट्टा तो सबका ही बैठने को है।

लोग बोलते कितना है, बेधड़क, नॉन स्टॉप, पर कुछ मतलब का भी तो बोला करो।

सआदत हसन मंटो ने कहा था, “लीडर जब आँसू बहा कर लोगों से कहते हैं कि मज़हब ख़तरे में है तो इसमें कोई हक़ीक़त नहीं होती। मज़हब ऐसी चीज़ ही नहीं कि ख़तरे में पड़ सके, अगर किसी बात का ख़तरा है तो वो लीडरों का है जो अपना उल्लू सीधा करने के लिए मज़हब को ख़तरे में डालते हैं।

इसलिए वोट डालिये, क्योंकि सब कुछ यहाँ जी भर जियो, क्या पता कल हो न हो।

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