चंचल मन अति रैंडम
चंचल मन अति रैंडम जैसे गानों के लिखे बोल आज की बहुत खूब बानगी देते है।
चंचल मनो की अति रैंडम उपज हर दूसरे दिन देखने को मिल ही रही है, कही चुनावों की लिस्ट की दौड़ भाग में तो कही गिरती धोती को बचाने की कश म कश में।
कही टिकट कटने के बाद का कौतूहल है तो कही परिवारवाद के नाम पर बेटे को वोट दिलाने की जद्दोजहद।
इन्ही रैंडम डिसिशन मेकर्स के हाथ से फिसलता शगूफ़ा कुछ अपने हाथ भी लगा।
मित्रों से लेकर भाइयों- बहनों की देश, विदेश की बातों में कई किस्से निकले, कही कहानियाँ बनी, कुछ की फिल्में भी बनी, जो चुनाव के बाद ही प्रदर्शित हो सकेगी, वो भी आज मन ही मन गा रही होगी, “हमें तो अपनों ने लूटा, गैरों में कहां दम था?
हमारी फिल्म की रिलीज़ डेट भी तब की निकली जब हरयाणा चुनाव कुछ ही कदम पर था।”
खैर शिगूफ़ा आया फिर वही गैस सिलिंडर का, अब फलां-फलां रुपया में मिलेगा, और जब तक नहीं मिलता तब तक खुद की आत्मा को जलाओ।
इसी बात पर इस गाने के आगे के बोल याद आते है, “चंचल मन अति रैंडम, दे गयो धोका, फिसल गयो रे।”
मगर इन सब से जरूरी सवाल यह भी है, की ब्राउन रंग लिखा किसने ? इसकी भी सीबीआई से जांच होनी चाहिए, इससे भी लोगों की भावनाएं आहत होती है, यह भी एक कौम का धार्मिक संगीत तो बन ही गया था। हर दूसरे धर्म की तरह बिना किसी सवाल के सिर्फ पूजा जाता था, उन्होंने जो भी किया उसे अच्छा और सही ठहराया जाता था, कई लोग उस गाने को बहुत ऊँची आवाज़ पर सुनते थे तो कई कमरे में बंद, अकेले वॉल्यूम 1 पर भी सुनते थे, पर मजाल है की किसी ने कभी भी कहा हो की यह बेहतर हो सकता था।
उनके नए गाने हमें आज पसंद नहीं आ रहे है क्योंकि हमारा नए दौर के संगीत में स्वाद बेहतरी की तरफ बढ़ा है, गाने उनके आज भी बहुत कुछ वैसे ही है।
शिगूफ़ा एक और आया है शान्ति का, देश के अंदर की बाद में बात हो जाएगी पहले बाहर से चुनाव जीत कर आये है उस पर बात हो जाए। कुछ चीज़ें जलेगी तभी तो गर्मी होगी।
अंगराईआं लेते है जब ज़ोर ज़ोर से, कुछ चैनल्स से आती है आवाज़ हर ओर से, वो जो चले इस कदर, की मच जाए रे ग़दर।
लोगो को तारीफ भी सुनना है, मगर नाम भी नहीं आना चाहिए, काम नहीं करना है मगर नाम होना चाहिए। अजीब सी फ़कीरी है हर काम में, मगर शिगूफ़ा जरूर रहता है, हम सब में भी रहता है। सब कहते है मेरी वाली अलग है , और कुछ लोगो की होती भी है, इतनी अलग, की उन से ही अलग हो जाती है।
इसीलिए कदम कदम बढ़ाये जा, ख़ुशी के गीत गाये जा, और ठीक जिस से यह लेख प्रारम्भ किया था वही निष्कर्ष है इस लेख का, “चंचल मन, अति रैंडम ” |
Nice anuj👏
ReplyDeleteBhot dino baad kuch likhe ho.
Likhte raha karo ✌
Bhaut khub😍
ReplyDeleteZabardast Hero 😍🔥💙🤘
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